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'घोड़े के ढीले होने के बाद अस्तबल में ताला लगाना': दंगों के बाद शराब के ठिकाने बंद करने के लिए पुलिस की छापेमारी

'Locking the stables after the horse is loose': Police raids to close down the liquor dens after the riots

दो दिन में पुलिस ‘घोड़े के छूटने के बाद अस्तबल में ताला लगाने’ जैसी हो गई। बोटाद-धंधुका दंगों में देशी शराब के सेवन से 40 लोगों की मौत के बाद पुलिस ने राज्य में शराब की दुकानों को बंद करने की कवायद शुरू कर दी है. छापेमारी वाले दिन और सोमवार की शाम तक राज्य के अधिकतर जाने-माने शराब तस्करों के ठिकाने बंद कर दिए गए. राज्य के शहरों और ग्रामीण इलाकों में लाठीचार्ज का असर पुलिस के प्रदर्शन पर देखने को मिला.

पुलिस को राज्य में शराब के ठिकाने साफ करने का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी




लट्ठा की घटना के मद्देनजर पुलिस ने राज्य भर में शराब के ठेकों और शराब तस्करों पर नकेल कसना शुरू कर दी थी. अहमदाबाद, सूरत, राजकोट और वडोदरा जैसे शहरों के साथ-साथ अन्य ग्रामीण इलाकों में पुलिस ने यह सुनिश्चित करने की कवायद शुरू कर दी थी कि किसी भी हालत में शराब के ठिकाने नहीं बने रहें.

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पुलिस की इस कार्रवाई को लेकर लोगों के बीच बहस चल रही है कि शराब बेचने वाले तत्वों या शराब गढ़ के लोगों की तमाम शिकायतों के बावजूद पुलिस द्वारा सभी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की जाती है. हालांकि पुलिस को पता चला है कि लट्ठा कांड में लोगों की जान बचाने के लिए सफाई अभियान में देरी की गई है. चर्चा है कि पुलिस अधिकारियों और प्रशासकों की मिलीभगत से ही शराब के ठेले चल रहे हैं.

पुलिस विभाग में कार्यरत अधिकांश अधिकारी प्रशासक बन गए हैं। असामाजिक गतिविधियों में लिप्त तत्वों को प्रोत्साहित कर प्रशासक किश्तें लेकर अवैध धंधा कर रहे हैं। राज्य में नशे की लत और शराब के ठिकाने से कई लोगों की जिंदगी बर्बाद हो चुकी है लेकिन कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाती है. लोगों के बीच चर्चा है कि दंगे जैसी घटनाएं होने पर पुलिस द्वारा सख्त कार्रवाई की जा रही है।

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