मूवी रिव्यु: खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा
निर्देशक फारूक कबीर की खुदा हाफिज वन को ओटीटी पर खूब सराहा गया। दर्शकों के इसी ट्रेंड को ध्यान में रखते हुए फिल्ममेकर्स ने खुदा हाफिज 2 के रूप में इसे बड़े पर्दे पर उतारा।
लेकिन कहानी के मामले में ये कुछ कमियां हैं, जिन पर ध्यान दिया जाता तो यह फिल्म और दिलचस्प हो सकती थी। बावजूद इसके कहा जा सकता है कि पार्ट 2 में विद्युत जामवाल अपने फुल फॉर्म में नजर आ रहे हैं.
‘खुदा हाफिज 2’ की कहानी
कहानी पिछले एपिसोड से आगे बढ़ती है। समीर (विद्युत जामवाल) और उसकी पत्नी नरगिस (शिवालिका ओबेरॉय) अपने जीवन की सबसे बुरी त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, जहां नरगिस के अपहरण के बाद सामूहिक बलात्कार किया गया था। नरगिस पूरी तरह से टूट चुकी हैं और उनका मनोवैज्ञानिक इलाज चल रहा है।
समीर अपने दोस्त की पांच साल की अनाथ भतीजी नंदिनी को उसकी जिंदगी वापस पाने के लिए घर में लाता है और समीर और नंदिनी उसे कानूनी रूप से गोद ले लेते हैं। नरगिस अभी-अभी नंदिनी की मासूमियत से अपने पुराने घाव भर रही थी, तभी एक दुर्घटना हो जाती है और नन्ही नंदिनी एक जघन्य अपराध का शिकार हो जाती है। इसके ठीक बाद नरगिस और समीर की जिंदगी में सब कुछ बदल जाता है। समीर अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए अलग रास्ते पर जाता है, लेकिन क्या वह बड़ी ताकतों और व्यवस्था के खिलाफ जाकर बेटी को इंसाफ दिला सकता है? क्या नरगिस अपनी जिंदगी में वापसी कर पाएगी? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
‘खुदा हाफिज 2’ की समीक्षा
कहानी की दृष्टि से फिल्म का फर्स्ट हाफ इमोशनल होने के साथ-साथ समय का पाबंद भी जोड़ता है, लेकिन सेकेंड हाफ में कहानी प्रतिशोध के बिंदुओं के इर्द-गिर्द घूमने लगती है, जो हमें हिंदी फिल्मों में कई बार देखने को मिलती है। कई बार देखा है। मध्यांतर के बाद कहानी एक हाई ऑक्टेन एक्शन-ड्रामा में बदल जाती है और इसमें कोई शक नहीं कि एक्शन की दृष्टि से फिल्म बीस ही साबित होती है। एक्शन के मामले में क्लाइमेक्स में जेल वाले, मुहर्रम और मिस्र का पीछा करने वाले सीन बेजोड़ साबित होते हैं।
एडिटिंग की बात करें तो फिल्म की लंबाई 15-20 मिनट कम की जा सकती थी। जितने हरमीत की सिनेमैटोग्राफी की तो तारीफ करनी ही पड़ेगी। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर दमदार है जबकि संगीत के मामले में फिल्म ठीक-ठाक है। फिल्म ‘जुनून है’ और ‘रुबरू’ के गाने एवरेज हो गए हैं।
एक्शन और एक्टिंग की बात करें तो विद्युत ने अपने रोल के साथ पूरा न्याय किया है। पहले हाफ में नौकरीपेशा पति और पिता के बाद वह समीर की भूमिका में हैं, जो दूसरे हाफ में बदला लेने की ठान लेता है।
शिवलीका ओबेरॉय ने अपनी भूमिका निभाई है, लेकिन उन्हें सेकेंड हाफ में स्क्रीन स्पेस नहीं दिया गया है। राजेश तैलंग प्रभावित नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन हां, ठाकुर जी की निर्मम भूमिका में शीबा चड्ढा भूमिकाओं के मामले में प्रयोग करती दिख रही हैं। शीबा ने फीमेल बाहुबली का रोल बहुत ही दमदार तरीके से निभाया है। दिब्येंदु भट्टाचार्य से और अधिक की उम्मीद थी। सहयोगी कास्ट सामान्य है